Ravan : Raja rakshansonka (Hindi)

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शतरंज, रूद्रवीणा, रावणसंहिता, कुमारतंत्र, शिव तांडव स्तोत्र द्वारा ज्ञान कक्षाओं को नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। दैत्य, दानव, असुर और कितनी ही घुमंतु जातियों को जोड राक्षस संस्कृति की नींव रखी। दर्शन, व्यापार, राज्यशास्त्र, आयुर्वेद जैसे कई विषयों में पांडित्य अर्जित करने पर भी खलनायक कहकर रावण की उपेक्षा ही की गई।

अवहेलनाओं के भवर में फँसे रावणके जीवन का सार तुच्छ विशेषणों की भरमार से रचा गया। हजारों सालों से रावण की दहन का उत्सव सहर्ष मनाया जाता है।

रावण के जीवन में घटित घटनाएँ… अनपेक्षित उठे तुफान… इसके बाद भी विचारों के चिथड़ों को संजोते हुए अपने हिम्मत पर लंकाधिपति वो बने.

अन्य राजाओं के समान उन्होंने अकेले ही ऐश्वर्य नहीं भोगा। उनके राज्योकी जनता भी सोने के घरों में रहती थी। हजारों सालों से अनुत्तरित उनके व्यक्तिगत जीवन का, उनकी अंगभूत क्षमताओं को जानने का प्रयास किया है कभी? रावण का जीवन रोमहर्षक प्रसंगों और विस्मयकारी कर्तृत्व से भरा हुआ है। अपने दम पर उन्होंने सभी देवों को पराजित किया। सीता के अपहरण का दोष देते हैं पर रावणने उसका चरित्र हनन नहीं किया, इसे क्यों भूला जाते हैं ?

ये सब की जानकारी आपको इस किताबमे मिलेगी.

सोचिए, समझिए…. उपन्यास पढिए और तय कीजिए…रावण खलनायक है या स्व सामर्थ्य पर खड़ा एक महानायक ।

Weight 200 g
Writer

Sharad Tandale

Number of Pages

432

Reader's Reviews

  1. Review:
    उपन्यासकार शरद तांदळे का प्रसिद्ध उपन्यास “रावण राजा राक्षसों का” पौराणिक कथाओं को नई दृष्टि से प्रस्तुत करता है.
    एक दिन रावण अपने भाई कुंभकर्ण से असुरों की हार के कारणों की समीक्षा करता है. कहता है कि तमाम बल और ज्ञान के बावजूद भी हम क्यों हारे हैं, इसलिए कि हमने कपट – शिक्षा ग्रहण नहीं की है.
    देवोंने झूठी अफवाह फैला रखी है कि हमने अमृत पी लिया है, मरेंगे नहीं, ऐसी कपटपूर्ण अफवाहों से असुरों का मनोबल टूट गया.
    विजेताओं के कुटिल मनोविज्ञान को उभारता हुआ यह उपन्यास आज भी पराजितों को उससे सीख लेने के लिए प्रासंगिक है.
    इसे न्यू ईरा पब्लिशिंग हाउस, पुणे ने प्रकाशित किया है और इसका हिंदी भाषांतर प्रा. दिपक जाधव ने प्रस्तुत किया है.Thank you, sir…
    Rajendra Prasad Singh
    (A well-known linguist, critic, author and historian)
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